पुलिस अगर आपको कर रही हो गिरफ्तार तो ये हैं आपके कानूनी अधिकारImage Source: Google
किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी गैर कानूनी तरीके से नहीं की जा सकती है तथा उसके मानवाधिकारों का उल्लंघन कतई नहीं किया जा सकता है। यदि पुलिस के द्वारा ऐसा किया जाता है तो इसके विरुद्ध न्यायालय में रिट दायर की जानी चाहिए।
संपादकीय । यदि पुलिस किसी को गैरकानूनी तरीके से गिरफ्तार करती है तो यह न सिर्फ भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता मतलब सीआरपीसी का उल्लंघन है, बल्कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20, 21 और 22 में दिए गए मौलिक अधिकारों के भी विरूद्ध है। दरअसल, किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी से सम्बंधित प्रावधानों का उल्लेख सीआरपीसी में मिलता है, खासकर भाग-5 धारा-41 से धारा-61 ए उन सभी प्रक्रियाओं व कार्यों के बारे में उपबंध करता है जो प्रत्येक व्यक्ति के अधिकारों व कर्तव्यों से सम्बंधित है।
इस बात में कोई दो राय नहीं कि गिरफ़्तारी हमेशा कोई अपराध करने या फिर किसी अपराध करने से विरत रहने के लिए की जाती है। क्योंकि समाज में विधि का शासन हो, कानून व्यवस्था मौजूद रहे, इसी दिशा में पुलिस प्रशासन कार्यरत रहता है। लिहाजा, वह उन व्यक्तियों को उन दशाओं में गिरफ्तार कर सकता है, जब वह किसी कानून का उल्लंघन करता है जो कि कानून की नज़र में अपराध है।
कहने का तात्पर्य यह कि पुलिस को जब किसी व्यक्ति के द्वारा कोई संज्ञेय अपराध करने के बारे में या तो कोई विश्वसनीय शिकायत मिली हो या कोई पुख्ता जानकारी मिली हो या कोई प्रबल संशय हो तो वह किसी को भी गिरफ्तार कर सकती है। या फिर, यदि कोई व्यक्ति उद्घोषित अपराधी रह चुका है, या जब किसी व्यक्ति के पास से चोरी की हुई संपत्ति बरामद की जाती है और वह व्यक्ति चोरी के अपराध में लिप्त पाया जाता है या उस संपत्ति के चोरी होने के अपराध में लिप्त होने का युक्तियुक्त संशय होता है, तो पुलिस उसे काबू में कर लेती है।
इसके अलावा, जब कोई व्यक्ति किसी पुलिस अधिकारी को अपने कर्तव्य करने से रोकता है या किसी विधिपूर्ण अभिरक्षा से भागता है या भागने का प्रयास करता है, अथवा जब कोई व्यक्ति किसी सैन्य बल से भागा हुआ युक्तियुक्त रूप से पाया जाता है, तब पुलिस के द्वारा गिरफ्तारी की जाती है। लेकिन पुलिस का यह कर्तव्य बनता है कि वह गिरफ्तार व्यक्ति को उन सभी आधारों के बारे में बताएगी, जिसके कारण उसे गिरफ्तार किया गया है।
यदि किसी को जमानतीय अपराध में गिरफ्तार किया गया है तो उसे जमानत पर छोड़े जाने के बारे में भी विधिवत सूचित किया जायेगा। यही नहीं, गिरफ्तार किये गए व्यक्ति का किसी मेडिकल ऑफिसर द्वारा चिकित्सकीय परीक्षण भी किया जाएगा, जिसकी रिपोर्ट को उसे या उसके किसी नामित व्यक्ति को दिया जाना जरूरी है।
यहां पर यह स्पष्ट करना जरूरी है कि किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी गैर कानूनी तरीके से नहीं की जा सकती है तथा उसके मानवाधिकारों का उल्लंघन कतई नहीं किया जा सकता है। यदि पुलिस के द्वारा ऐसा किया जाता है तो इसके विरुद्ध न्यायालय में रिट दायर की जानी चाहिए और मानवाधिकार आयोग में उचित शिकायत की जानी चाहिए। इसलिए पुलिस यदि आपको गिरफ्तार कर रही हो तो आपके कानूनी अधिकार निम्नलिखित हैं। इसलिए, आप इस बात को लेकर बिल्कुल आश्वस्त रहें कि पुलिस आपके साथ कतई कोई भी मनमानी नहीं कर सकती है।
यदा कदा देखा जाता है कि हमारी सुरक्षा के लिए तैनात की गई पुलिस ही कई बार आम नागरिकों में खौफ की एक वजह बन जाती है। अब तक ऐसे कई मामले सामने आए हैं जब पुलिस ने पर्याप्त कारण न होने के बावजूद भी अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए लोगों को गिरफ्तार किया। अलबत्ता, यदि आपका सामना भी पुलिस के इस डरावने रूप से होता है तो बिल्कुल घबराएं नहीं, क्योंकि कानूनन आपको ऐसे कई अधिकार प्राप्त हैं जिसके होते हुए पुलिस आपको गिरफ्तार तो क्या हिरासत में भी नहीं ले सकेगी।
पुलिस किसी को भी अपनी मनमर्जी वाले तरीके से गिरफ्तार नहीं कर सकती, बल्कि उसे गिरफ्तारी के लिए पूरी कानूनी प्रक्रिया अपनानी होती है। अन्यथा, गिरफ्तारी गैरकानूनी मानी जाती है जिसमें पुलिस पर एक्शन भी लिया जा सकता है। यदि कोई पुलिस किसी को गैरकानूनी तरीके से गिरफ्तार करती है तो यह न सिर्फ भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता मतलब सीआरपीसी का उल्लंघन माना जाता है, बल्कि यह स्थिति भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20, 21और 22 में दिए गए मौलिक अधिकारों के भी खिलाफ है। लिहाजा, मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर पीड़ित पक्ष संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सीधे सुप्रीम कोर्ट जा सकता है।
आपको यह पता होना चाहिए कि सर्वोच्च न्यायालय ने डीके बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और योगेंद्र सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले में पुलिस गिरफ्तारी से संबंधित कानूनों का विस्तार से वर्णन किया है, जो इस प्रकार है- पहला, सीआरपीसी की धारा 50 (1) के तहत पुलिस को गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को गिरफ्तारी का मूल वजह बताना होगा। दूसरा, किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने वाले पुलिस अधिकारी को अपनी वर्दी में होना चाहिए और उसकी नेम प्लेट में उसका नाम स्पष्ट लिखा होना चाहिए। तीसरा, सीआरपीसी की धारा 41 बी के मुताबिक पुलिस को एक अरेस्ट मेमो तैयार करना होगा, जिसमें गिरफ्तार करने वाले पुलिस अधिकारी की रैंक, गिरफ्तार करने का सही समय और पुलिस अधिकारी के अतिरिक्त प्रत्यक्षदर्शी के भी दस्तखत होंगे। चतुर्थ, अरेस्ट मेमो में गिरफ्तार किए गए व्यक्ति से भी हस्ताक्षर करवाना होगा।
पांचवां, सीआरपीसी की धारा 50 (ए) के अनुसार, गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को यह अधिकार होगा कि वह अपनी गिरफ्तारी की जानकारी अपने परिवार या रिश्तेदार को दे सके। यदि गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को इस कानून के बारे में जानकारी नहीं है तो पुलिस अधिकारी को खुद इसकी जानकारी उसके परिवार वालों को अविलम्ब देनी होगी। छठा, सीआरपीसी की धारा 54 में साफ-साफ कहा गया है कि यदि गिरफ्तार किया गया व्यक्ति मेडिकल जांच कराने की मांग करता है तो पुलिस उसकी मेडिकल जांच कराएगी। क्योंकि मेडिकल जांच कराने से फायदा यह होता है कि यदि आपके शरीर में कोई चोट नहीं है तो मेडिकल जांच में इसकी पुष्टि हो जाएगी और यदि इसके बाद पुलिस कस्टडी में रहने के दौरान आपके शरीर में कोई चोट के निशान मिलते हैं तो पुलिस के खिलाफ आपके पास पक्का सबूत होगा। आम तौर पर मेडिकल जांच होने के बाद पुलिस भी गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के साथ मारपीट नहीं करती है।
सातवां, कानून के अनुसार गिरफ्तार किए गए व्यक्ति की प्रत्येक 48 घंटे के अंदर मेडिकल जांच होनी चाहिए। आठवां, सीआरपीसी की धारा 57 के तहत पुलिस किसी भी व्यक्ति को 24 घंटे से ज्यादा हिरासत में नहीं ले सकती है। यदि कोई पुलिस किसी को 24 घंटे से ज्यादा अपने हिरासत में रखना चाहती है तो इसके लिए भी उसको सीआरपीसी की धारा 56 के तहत मजिस्ट्रेट से इजाजत लेनी होगी और मजिस्ट्रेट इस संबंध में इजाजत देने का स्पष्ट कारण भी बताएगा। नवम, सीआरपीसी की धारा 41डी के अनुसार गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को यह पूरा अधिकार होगा कि वह पुलिस जांच के दौरान कभी भी अपने अधिवक्ता से मिल सकता है। साथ ही वह अपने अधिवक्ता और परिजनों से सामान्य बातचीत कर सकता है।
दशम, यदि गिरफ्तार किया गया व्यक्ति गरीब है और उसके पास पर्याप्त रुपए-पैसे नहीं हैं तो उस स्थिति में उनको फ्री में कानूनी मदद दी जाएगी, मतलब उसको मुफ्त में एडवोकेट मुहैया कराया जाएगा। ग्यारह, असंज्ञेय अपराधों के मामले में गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति को गिरफ्तारी वारंट देखने का अधिकार होगा। जबकि गंभीर अपराध के मामले में पुलिस बिना वारंट दिखाए ही सम्बन्धित व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकती है। बारहवां, जहां तक महिलाओं की गिरफ्तारी का संबंध है तो सीआरपीसी की धारा 46 (4) स्पष्ट रूप से कहती है कि किसी भी महिला को सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले कदापि गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है। हालांकि, यदि किसी परिस्थिति में किसी महिला को गिरफ्तार करना ही पड़ता है तो इसके सर्वप्रथम क्षेत्रीय मजिस्ट्रेट से इजाजत लेनी होगी। तेरह, सीआरपीसी की धारा 46 के अनुसार महिला को केवल महिला पुलिसकर्मी ही गिरफ्तार करेगी। किसी भी परिस्थिति में किसी भी महिला को कोई पुरुष पुलिसकर्मी गिरफ्तार नहीं करेगा।
चौदह, सीआरपीसी की धारा 55 (1) के अनुसार गिरफ्तार किए गए व्यक्ति की सुरक्षा एवं सम्पूर्ण स्वास्थ्य का ख्याल पुलिस को रखना होगा। इस सम्बन्ध में सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता सुधांशु चौधरी का कहना है कि यदि उपरोक्त किसी भी कानून का पुलिस पालन नहीं करती है तो उसकी गिरफ्तारी गैरकानूनी होगी और इसके लिए पुलिस के खिलाफ कार्रवाई भी की जा सकती है।
-कमलेश पांडेय