बस्ती/ जिले के रहने वाले करीब 67 साल के सेना से रिटायर कर्नल केसी मिश्र अपने खेती में किए जा रहे नवाचारों के चलते अलग पहचान रखते हैं। वह हाल ही में बस्ती फैजाबाद राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित रिठिया के पास अपने फार्म हॉउस में सेब के विभिन्न प्रजातियों के सेब के पौधे उगानें में कामयाब रहें हैं। जिसको लेकर वह काफी उत्साहित हैं। उनके द्वारा रोप गए सेब के सभी पौधे बस्ती की आबोहवा में विकसित हो रहें हैं।
बस्ती शहर के आवास विकास कालोनी के रहनें वाले रिटायर्ड कर्नल केसी मिश्र ने बस्ती फैजाबाद हाइवे से रिठिया में अपना फार्म हॉउस बना रखा है। जहाँ वह जैविक तरीके से अनाज, दुर्लभ जड़ी बूटियों के साथ ही विभिन्न प्रजातियों के फल-फूल की भी खेती कर रहें हैं।
इसी के साथ उन्होंने हाल ही में अपने खेतों में सेब की तीन किस्मों की रोपाई की थी जो बड़ी तेजी से बस्ती के आबोहवा में विकसित हो रहें हैं। उन्होंने बस्ती में सेब की खेती की संभवनाओं को लेकर कहा की ठंढे प्रदेशों में उगाया जाने वाला सेब अब मैदानी इलाकों में भी आसानी से उगाया जा सकेगा। जिसको लेकर उनका प्रयोग सफल रहा है।
उन्होंने बताया की करीब 30 सालों से बंजर पड़ी हुई 3 एकड़ जमीन को खरीद कर उसे खेती लायक बनाया और सेना से रिटायर होने के बाद अपने साथ लाये 370 किस्म के पौधों की रोपाई अपने फार्म हॉउस में करवाया था। कर्नल मिश्र नें बताया की वह अपनें खेतों में सिर्फ गोबर की खाद व कंपोस्ट का इस्तेमाल ही करते हैं। इसके अलावा वह देश के अलग-अलग हिस्सों से इकट्ठा किए गए दुर्लभ पौधों को इस जमीन पर रोप कर उसे बस्ती की आबोहवा में उगाने में भी सफल रहें हैं। उन्होंने वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून से लाई गई बांस की दुर्लभ काली व पीली प्रजातियों को उगाने में भी सफलता पाई है।
कर्नल मिश्र का कहना है कि बांस की इन प्रजातियों को बस्ती की आबोहवा में उगाना आसान नहीं था, लेकिन वन अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा दिए गए सुझावों से उन्हें इन प्रजातियों को आसानी से उगाने में सफलता मिली। बताया की बांस की काली और पीली प्रजातियों का इस्तेमाल महंगी सजावटी चीजों को बनाने के लिए किया जाता है।
वह अपने खेतों में उन्होंने दुर्लभ पौधों की श्रेणी में टैगोर चांदनी, पश्चिम बंगाल के कलिगपोंग से लाए गए खास श्रेणी के कैक्टस, आर्टिमिसिया, कालमेघ, चीकू, फालसा, अदरक व हलदी वगैरह उगा रखे हैं। और इन की व्यावसायिक खेती के लिए वे समय-समय पर किसानों और युवाओं को टिप्स भी देते रहते हैं।
इसी के साथ कर्नल मिश्र ने देश के अलगअलग क्षेत्रों के लिए मुफीद माने जाने वाले कई फलदार पेड़ों की प्रजातियों को बस्ती की आबोहवा में उगाने में सफलता पाई है। जिन से वे व्यावसायिक लेवल पर फल भी प्राप्त कर रहे हैं।
उन्होंने अपने 10 बिस्वा खेत में अमरूद की अलग-अलग 14 किस्में भी लगा रखी हैं, जो मौसम के अनुसार अलगअलग समय में फल देती हैं। सघन बागबानी के तहत लगाए गए इन पौधों की किस्मों में लखनऊ 49, इलाहाबादी सुरखा, इलाहाबादी सफेदा, श्वेता, हिसार सुरखा, पंत प्रभात व जैम बनाने के लिए सब से मुफीद मानी जाने वाली ललिता प्रजातियां शामिल हैं।
इन के अलावा कर्नल के बाग का काला अमरूद अपनी खास पहचान रखता है। उस में भारी मात्रा में आयरन व कम मात्रा में शुगर पाई जाती है। इस वजह से बाजार में इस की बहुत मांग होती है। अन्य फलदार पेड़ों में उन्होंने बीज रहित नीबू, लीची व अनार की कई प्रजातियां लगा रखी हैं।
कर्नल केसी मिश्र ने आम की खुद की तैयार की गई प्रजातियों के साथसाथ कई दुर्लभ प्रजातियों की भी बागबानी की है। उन के द्वारा तैयार किए गए एक ही पौधे पर 12 अलगअलग पौधों की क्राप्टिंग से तैयार पेड़ 12 अलगअलग तरह के फल देते हैं। वहीं कर्नाटक के रत्नागिरी के मशहूर अल्फांसो, अरुनिमा, सूर्या, स्वर्णरेखा, मलीहाबादी दशहरी, आम्रपाली, इंडोनेशिया व वृंदावनी जैसी प्रजातियां भी उन के बागों की शोभा बढ़ा रही हैं। उन के आमों की खास प्रजातियों में काला पत्थर नाम का आम पकने से 10-12 दिनों तक खराब नहीं होता है। इस प्रजाति का इस्तेमाल मैंगो फ्रूटी बनाने में किया जाता है। उन्होंने मुंबई के एलीफैंटा टापू से लाए गए जामुन की एक ऐसी प्रजाति लगाई है, जिस के फलों का वजन 50 से 100 ग्राम तक होता है।