मन को आहत कर रहा प्रकृति नटी का कोप
सावन में सूखा पड़ा हरीतिमा का लोप
मैंने तुझ पर फिदा हो जां कर दिया निसार
पर तूने मुझसे किया दुश्मन सा व्यवहार
नींद ना आती रात में दिन में मिले ना चैन
सावन भादो हो गये मेरे दोनों नैन
जान बूझ तूने दिया मुझको कष्ट अपार
सचमुच फीका हो गया राखी का त्यौहार
तू सचमुच बेरहम है तेरा नहीं जवाब
सुबह-सुबह ही कर दिया मेरा मूड खराब
तूने मेरे अधर का छीन लिया उल्लास
प्यार न करती जब मुझे फिर क्यों आती पास
डॉ रामकृष्ण लाल जगमग
582 आवास विकास कॉलोनी
बस्ती उत्तर प्रदेश